सोमवार, 3 अप्रैल 2017

मेरी नायिका - ७



" एक मुठ्ठी चावल दे दो ... 
 एक मुठ्ठी चावल दे दो "
इस चालीस डिग्री तापमान की दोपहरी में लगभग ७० साल की एक बुजुर्ग स्त्री सड़क पर जोर जोर से बोलते/पूछते हुए। 
मैं छत से देखती हूँ तो पूछती हूँ कि भूखी हो ? क्या रोटी खा लोगी ?
उसने 'हाँ ' में सर हिलाया।
तुरंत नीचे जाकर दो रोटी सब्जी, मठरी, एक मीठे के साथ ले जाती हूँ और उसके हाथ में डिस्पोजेबल प्लेट पर परोसा खाना रख देती हूँ। फिर पूछती हूँ अम्मा, कहाँ से हो ?
बताती है, लखनऊ से।
क्या करती हो ? तो कहने लगी, ढोलक बनाती हूँ।
फिर सड़क किनारे बैठकर खाना खाने लगी।
मैं चलने लगती हूँ तो बोलती है कि कुछ पहनने के लिए साड़ी है? मैंने कहा, अच्छा रुको। कहकर एक सलवार कुर्ते का जोड़ा निकलती हूँ और दे आती हूँ। मैंने कहा, ख़ुद ही पहनना। सुनकर कहने लगी , क्या बात करती हो ? तुमसे मोहब्बत हो गयी है । भला किसी और को क्यों दू ।
उसकी बातों पर मुझे हँसी आ गयी मैंने पुछा, क्या मैं तुम्हारी फ़ोटो खींच सकती हूँ ? तुरंत दुपट्टे से अपने सर को ढाँकती है और कहती है, "हाँ " और मैं तुरंत दो फ़ोटो खींच लेती हूँ ।
अपनी फ़ोटो को देखने के लिए मेरा मोबाइल माँगती है और उसका खिला चेहरा देख
मैं अंदर तक गुनगुना जाती हूँ।
आनेवाला पल जानेवाला है
हो सके तो इस में जिन्दगी बिता दो
पल जो ये जानेवाला है ...


- निवेदिता दिनकर 

1 टिप्पणी:

  1. आत्मिक आनंद से भरे पलों के अलावा असल आनंद नहीं जिंदगी में ... और ऐसे पल अन्दर तक विभोर का देते हैं ...

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