गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

बर्फ ही बर्फ



एक : "जब मैं छोटा था, फ्रिज में से बर्फ निकालकर एक दूसरे भाई बहनों पर फेंका करता  था।"

दूसरा : "जब मैं छोटा था, हमारे घर में फ्रिज नहीं था और हम पड़ोस के घर से बर्फ लाकर शिकंजी में डाल कर पीया करते थे।"

तीसरा : "जब ठण्ड के मौसम में माँ मुझे रात को कहानी सुनाकर सुलाया करती थी, तो मैं उनसे चिपट कर गहरी नींद में सो जाया करता था।" 

चौथा : "जब  मैं मम्मी पापा के साथ गुलमार्ग घूमने गया था, कैसे मैंने बर्फ के गोले बनाकर अपनी बहन पर डाला था।"    

सारे : "मगर, क्या आज  हम इस बर्फ के कहर से बाहर निकल पाएँगे ??"

- निवेदिता दिनकर  
  ०४/०२/२०१६  
सन्दर्भ : सियाचिन ग्लेशियर 
तस्वीर : उर्वशी दिनकर, लोकेशन : भीमताल  

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06-02-2016) को "घिर आए हैं ख्वाब" (चर्चा अंक-2244) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. पड़ोस से माँग के बर्फ तो गर्मियों के दिनों मे मैं भी लाता था ... कसम से बहुत अजीब सा feel होता था .... पर वोह दिन ही ऐसे ही थे .... बर्फ का कहर .... siachin से जोड़कर बहुत बढिया लिखा आपने

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