बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

तुम सम्हाल लोगे



सागर,
तेज ज्वार,
ऊँची सिलवटदार लहरें, 
खींच ले चली …
…मगर तुम्हारे आगोश की तृप्त सुलगन।

रेलवे स्टेशन,
जबरदस्त जन सैलाब,
भेदती आँखे …
डसते चेहरें,
… तुम्हारे आँखों का अटूट आलिंगन।

अस्तित्व की आपाधापी,
शरीर यात्रा
आत्म बलि ,
चहुंओर कश्मकश …
…पर तुम्हारे ह्रदय का अविराम स्पंदन।

री झरने की सी झर झर …
इतराती
बलखाती
डोलती
मदमस्त
बेरपरवाह
… और तुम्हारे एहसासो का रौशन पुनर्जन्म।

जानती थी …
तुम सम्हाल लोगे॥

- निवेदिता दिनकर 
  
आज की तस्वीर मेरी आँखों से …"हम तुम "

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